प्रेम-एक अनोखी परिभाषा

"प्रेम"यूं तो यह शब्द खुद में ही एक दुनियाँ है पर अगर मै इस दुनियाँ के छोटे से हिस्से पर नज़र डालूं तो पाता हूं कि प्रेम एक शक्ति है, एक ताक़त है, एक सकारात्मक ऊर्जा है, एक मजबूती है ।
लेकिन आज नज़र आता है तो केवल मायूसी,अंहकार,गुस्से,नफरत से भरे लोग ।।
किसी एक व्यक्ति या वस्तु की चाहत रखते हैं और चाहत पूरी न होने पर जिंदगी को कोसते है और भगवान से तमाम शिकायतें करते रहते है ।
अरे प्रेम कोई चाहत नही जिसे पूरी होने से खुशी और अधुरी रहने से मायूसी हो,
सच्चा प्रेम तो प्राकृति का संतुलन है, मीरा की भक्ति है, सूर्य का तेज है, चन्द्रमा की शीतलता है, प्रेम मां की ममता है ।

एक बार बस एक बार ऐसे प्रेम की अनुभूति करके  तो देखो जीवन मे एक ऊर्जा का स्त्रोत पैदा न हो जाए तो कहना।।
प्रेम केवल एक व्यक्ति या वस्तु तक ही सीमित नही है ।
प्रेम तो असीमित है ।।
प्रेम करना है तो खुद से करो, सकारात्मक सोच से करो, जिंदगी से करो,अपने लक्ष्य से करो प्राकृति से करो व अपने काम से करो ।
यदि ऐसे प्रेम की अनुभूति हो जाए तो बड़ी -बड़ी कठनाईयों में भी जीवन हंसते-हंसते निकल जाएगा ।।
मुझे तो बस प्रेम की यही एक परिभाषा आती है ।
बस यही मेरा प्रेम है ।।
क्या तुम्हे भी हुई है ऐसी अनुभूति?
क्या हुआ है तुम्हे भी ऐसा प्रेम?? 

Comments

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  2. Indeed.....love is beautifully redefined in the time when we are making it a complicated process..thank you Prabhakar Chaturvedi sir for your contribution😊

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