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Showing posts from June, 2017

बदलाव

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होने के लिए हर इंसान मे हर साल, हर, महिने, हर दिन, हर सेकेंड कुछ-न-कुछ बदलाव आता है! इंसान अपनी प्राथमिकताओ के कारण समय-समय पर बदलता रहता है! वो आज क्या है, किन लोगो के साथ है ये सब 2-3 महिने मे भूल जाता है क्योकी इंसान की प्राथमिकताएँ वक्त के साथ बदलती रहती है वो अपनो के लिए भी प्राथमिकताओ की वजह से बदलता रहता है! क्या हर साल, हर, महिने, हर दिन, हर सेकेंड हमे अपनी प्राथमिकताओ की वजह से खुद को औरों के लिए बदलना चाहिये??? नही!!! क्योकी हर एक दिन नया होता है, हर दिन कुछ-न-कुछ बदलेगा ही! लेकिन कुछ चीजे नही बदलती जैसे सूरज.... वो रोज की तरह हर सुबह उसी तेज के साथ उसी आकार मे पूरी दूनिया को प्रकाशित करता है वो कभी हमारे लिए नही बदलता! क्या उसकी प्राथमिकताएँ नही हो सकती?? प्राथमिकताएँ हर किसी की होती है उनके लिए हम खुद के लिए थोडा बदल सकते है लेकिन औरों के लिए नही!                     बदलाव इंसान मे ज़रूरी है क्योकी कभी -कभी परिस्थितियां ऐसी हो जाती है जहां इंसान को खुद को बदलना ही पड़ता है! लेकिन इंसान को कभी भी अपने आस- पास के करीबी लोगो के लिए नही बदलना चाहिये क्

ईमानदारी

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बचपन से एक शब्द बहुत सुना ईमानदारी! आखिर ये होती क्या है??? इसका ज़वाब खोजना बड़ा मुश्किल था! धीरे-धीरे जब दूनिया को जाना तो पता चला यहां लोग बेईमानी मे ज्यादा और ईमानदारी मे कम जीते है!  चाहे रिश्ते मे देखो, चाहे दोस्ती मे देखो या चाहे प्यार मे देखो हर जगह ज्यादा बेईमानी ही दिखती है! लेकिन इन सब के बाद भी कुछ लोग ऎसे है जिनकी वजह से ईमानदारी आज भी कही न कहीं जीवित है!! हाल ही की एक सच्ची घटना जहां ट्रैफिक की वजह से बसे रुकी थी एक बस से एक यात्री ने सडक किनारे खडे पानी बेचने वाले बच्चे से पानी की बोतल ली जिसके उसने 50 रू दिए पर बचे हुए 30 रू लेने से पहले बस चल पड़ी! वो बच्चा अपनी बाकी पानी की बोतल छोड के बस के पीछे क़रीब 1km तक भागा वो भी केवल 30 रू वापिस करने के लिए!!! मतलब एक 12 साल का बच्चा अपने धन्धे की परवाह किए बिना यात्री के 30 रू वापिस करने 1km भागता है! इससे बड़ी ईमानदारी का जवाब शायद ही कुछ हो सकता था!  इसी तरह दोस्ती मे भी कुछ दोस्त ऎसे होते है जिनकी ईमानदारी दोस्ती शब्द को और भी ऊंचा कर देती है! हर परिस्थितियों मे एक -दूसरे दोस्तों के साथ रहना, चा

बचपन

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बोलते थे झूठ फिर भी सच्चे थे हम, ये उन दिनों की बात है जनाब जब बच्चे थे हम! न जाने कितनो की गोद मे खेला और न जाने किस-किस से मिले थे हम, बिना बात के रोया करते थे, कोई जब खिलोना दे दें तो अपने आप खुश हो जाते थे हम !! जब रोते थे तो न जाने कितनो की बचकानी (बच्चो वाली हरकत) हरकतो से चुप होते थे हम, कोई हमारे लिए घोडा बनता तो कोई उम्र मे हमसे भी छोटा बन जाता था! न कुछ पाने की आशा थी और न कुछ खोने का गम था बस अपनी ही धुन मे हंसते-रोते थे हम!! याद है आज भी वो बचपन की अमीरी जब बारिश के पानी मे हमारे भी जहाज(नाव) चला करते थे! जहां चाहा वहां रोते थे, जहां चाहा वहां हंसते थे हम, अब मुस्कुराने के लिए तमीज चाहिये और रोने के लिए एकांत!  बचपन मे पता नही कितने दोस्त बनाए , कितनो के साथ खेला सब याद तो नही पर बहुत मजेदार थे वो दिन! हम दोस्तों के पास घडी नही थी पर हर किसी के पास समय हुआ करता था, आज सभी के पास घडी है पर समय किसी के पास नही!! अब तो बस फोटो मे ही दिखते है हम! 